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छत्तीसगढ़ के गांव-गांव में मातर जगाने की है परंपरा : शिव वर्मा

abernews  राजनांदगांव। जिला भाजपा पिछड़ा वर्ग मोर्चा के जिला अध्यक्ष व पार्षद दल के प्रवक्ता शिव वर्मा ने बताया कि छत्तीसगढ़ के गांव गांव मे...


abernews  राजनांदगांव। जिला भाजपा पिछड़ा वर्ग मोर्चा के जिला अध्यक्ष व पार्षद दल के प्रवक्ता शिव वर्मा ने बताया कि छत्तीसगढ़ के गांव गांव में मातर जगाने की परंपरा दिवाली, गोवर्धन पूजा, भाई दूज के बाद गांव गांव में मातर और मंडई की है परंपरा छत्तीसगढ़ में मातर मनाने की परंपरा लंबे समय से चली आ रही है. गोवर्धन पूजा के बाद के दिन मातर का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. इस पर्व में गाय की पूजा की जाती है. छत्तीसगढ़ में यह पर्व मुख्य रूप से यदुवंशी (राउत, ठेठवार, पहटिया) समाज के लोगों की ओर से यह पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।

श्री वर्मा ने आगे बताया कि मातर पूर्वजों की ओर से जंगल में जाकर इस कार्य को किया जाता था. जंगल में कोई नहीं होने के कारण 1 देवी देवता की जरूरत होती थी. इस कार्य को पूरा करने के लिए फूडहर देवता की पूजा की जाती है. यह परंपरा पुरातन काल से चली आ रही. इस दिन गाय के बछड़े की पूजा की जाती है। भगवान कृष्ण ने पूरी दुनिया को गोवंश से अवगत कराया। उसी समय गाय को माता का दर्जा मिला और वह पूजनीय हुई। भगवान कृष्ण यादव वंश के थे और फिर तभी से ही यादवों ने गाय को अपना आराध्य माना। युग युगांतर से चली आ रही परंपरा को छत्तीसगढ़ आज भी निभाता आ रहा है। दिवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा और उसके बाद के दिन को 'मातर" कहा जाता है। दीपावली के बाद गोवर्धन पूजा की जाती है. जिसमें अन्नकूट के साथ गायों की पूजा होती है. भाई दूज के दिन ठेठवार समाज के लोगों की तरफ से मातर का उत्सव मनाया जाता है. मातर का पर्व आज से शुरू होता है. इस दौरान सभी स्वजाति बंधु एक दूसरे के घरों पर जाते हैं और देवता धामी में भी पूजा-अर्चना होती है. साथ ही गाजे बाजे के साथ दोहा पढ़ते हुए यह पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं।

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