लेखक:- विजय शंकर द्विवेदी aber news। जब भारतीय संविधान की बात होती है, तो हमारी स्मृति में सबसे पहले डॉ. भीमराव अंबेडकर का नाम उभरता है —...
लेखक:- विजय शंकर द्विवेदी
aber news। जब भारतीय संविधान की बात होती है, तो हमारी स्मृति में सबसे पहले डॉ. भीमराव अंबेडकर का नाम उभरता है — और यह स्वाभाविक भी है। वे संविधान सभा की मसौदा समिति के अध्यक्ष थे, उन्होंने संविधान का स्वरूप दिया, उसे जनता के सामने प्रस्तुत किया और उसकी व्याख्या की। लेकिन इसी प्रस्थान बिंदु पर एक ऐसा नाम छूट जाता है, जिसे जानना और याद रखना उतना ही जरूरी है जितना संविधान को पढ़ना — और वह नाम है बेनगल नरसिंह राव, जिन्हें हम बी. एन. राव के नाम से जानते हैं।
बी. एन. राव न तो संविधान सभा में भाषणों के नायक बने, न अखबारों की सुर्खियों में रहे, और न ही उन्हें लोकनायक की तरह स्मरण किया गया। लेकिन भारतीय गणराज्य की नींव रखने वाले इस महान पुरुष ने अपने अध्ययन, दृष्टिकोण, और दूरदर्शिता से जो कार्य किया, वह संविधान के हर अनुच्छेद, हर पंक्ति में जीवित है। यह लेख बी. एन. राव के उसी अविस्मरणीय योगदान की एक भावांजलि है — उस व्यक्ति की जो संविधान की आत्मा को गढ़ते हुए स्वयं इतिहास के हाशिये पर चला गया।
अद्वितीय प्रारंभ, विलक्षण बुद्धि
26 फरवरी 1887 को मैंगलोर (तत्कालीन बंगाल प्रेसीडेंसी) में जन्मे बी. एन. राव का जीवन अपने आप में एक प्रेरक गाथा है। एक विद्वान ब्राह्मण परिवार में जन्म लेकर, उन्होंने बचपन से ही अनुशासन, अध्ययन और बौद्धिक जिज्ञासा को जीवन का आधार बनाया। मद्रास विश्वविद्यालय से स्नातक करने के बाद वे इंग्लैंड के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय गए, जहाँ उन्होंने कानून की पढ़ाई की और 'इनर टेम्पल' के सदस्य बने। यह यात्रा केवल शैक्षिक नहीं, बल्कि एक दृष्टिकोण की यात्रा थी — जहाँ से वे भारत लौटे एक ऐसे मानस के साथ जो पूर्व और पश्चिम के संवैधानिक मूल्यों की गहराई से समझ रखता था।
प्रशासनिक सेवा में अद्वितीय योगदान
राव ने ब्रिटिश भारतीय प्रशासनिक सेवा (ICS) में कार्य करते हुए खुद को एक ईमानदार, सुसंस्कृत और न्यायनिष्ठ अधिकारी के रूप में स्थापित किया। लेकिन उनका असली योगदान था — विधिशास्त्र और संवैधानिक सोच की उनकी विलक्षण समझ। 1935 के ‘गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट’ पर उनका विश्लेषण इतना सटीक और गूढ़ था कि उन्होंने इस जटिल विधिक दस्तावेज़ को भारतीय संदर्भ में समझने की कुंजी प्रदान की।
1944 में उन्हें जम्मू-कश्मीर राज्य का प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया, जो अपने आप में एक चुनौतीपूर्ण कार्य था। वहां भी उन्होंने संवैधानिक प्रशासन की नींव डाली, और यह अनुभव उन्हें आगे चलकर स्वतंत्र भारत के संविधान के निर्माण में अत्यंत उपयोगी सिद्ध हुआ।
संविधान निर्माण में बी. एन. राव की केंद्रीय भूमिका
1946 में जब भारत ने अपने संविधान के निर्माण का सपना साकार करना शुरू किया, तब बी. एन. राव को संविधान सभा का संवैधानिक सलाहकार नियुक्त किया गया। यह नियुक्ति एक औपचारिक जिम्मेदारी नहीं थी — यह भारत के लोकतांत्रिक भविष्य की नींव रखने का कार्य था।
राव ने न केवल अमेरिका, ब्रिटेन, आयरलैंड, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और सोवियत संघ के संविधानों का गहराई से अध्ययन किया, बल्कि उन्होंने तुलनात्मक रूप से यह समीक्षा की कि भारत जैसे विविधतापूर्ण समाज के लिए किस प्रकार का संविधान उपयुक्त होगा। उनकी 243 पृष्ठों की रिपोर्ट ने संविधान सभा को एक दिशा, एक प्रारूप और एक दर्शन प्रदान किया। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि यह रिपोर्ट भारत के संविधान की ‘ब्लू प्रिंट’ थी।
डॉ. अंबेडकर और बी. एन. राव: दो दिशाएं, एक ध्येय
जहां डॉ. अंबेडकर ने संविधान सभा में अनुच्छेदों की राजनीतिक और सामाजिक व्याख्या की, वहीं बी. एन. राव ने उन्हें विधिक स्वरूप और संरचना दी। अंबेडकर ने कई अवसरों पर राव की प्रतिभा और योगदान को सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया और उन्हें “भारत के संविधान निर्माण का पथप्रदर्शक” कहा।
यह साझेदारी भारतीय संविधान निर्माण की सबसे बड़ी ताकत थी — जिसमें सामाजिक न्याय की दृष्टि और विधिक संतुलन का मेल हुआ।
अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की आवाज़
भारत में संविधान निर्माण के बाद बी. एन. राव को संयुक्त राष्ट्र के अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) में भारत का प्रतिनिधि और न्यायाधीश नियुक्त किया गया। यह नियुक्ति केवल एक सम्मान नहीं, बल्कि भारत की अंतरराष्ट्रीय विधिक प्रतिष्ठा का प्रतीक थी। वहां राव ने न्याय, अंतरराष्ट्रीय शांति और निष्पक्षता के सिद्धांतों को नई ऊंचाई दी।
लोकतंत्र और विधिशासन की उनकी परिकल्पना
बी. एन. राव ने भारत के संविधान को एक स्थिर, उत्तरदायी और न्यायसंगत शासन तंत्र बनाने की दृष्टि से देखा। उनके विचारों में ‘न्यायिक पुनरीक्षण’, ‘संविधान की सर्वोच्चता’, और ‘मौलिक अधिकारों की संरक्षा’ जैसे आधुनिक सिद्धांत स्पष्ट रूप से परिलक्षित होते हैं। उन्होंने यह भी सुनिश्चित किया कि भारत का संविधान केवल कानूनों की पुस्तक न बनकर, एक जीवंत और लचीला दस्तावेज बने, जो समय के साथ विकसित हो सके।
समावेशिता का स्वर
बी. एन. राव का संविधान सभी वर्गों, जातियों, धर्मों और भाषाओं को समाहित करने की भावना से प्रेरित था। वे नहीं चाहते थे कि संविधान किसी एक विचारधारा का दर्पण बने। उन्होंने धर्मनिरपेक्षता, संघीय संरचना और भाषायी संतुलन पर विशेष बल दिया — यही कारण है कि भारतीय संविधान एकता में विविधता की अद्भुत मिसाल बन पाया।
क्यों भूल गए हम बी. एन. राव को?
इतिहास का यह दुर्भाग्य है कि जो लोग मंच पर होते हैं, वे स्मरण में रह जाते हैं; और जो परदे के पीछे संपूर्ण ढांचा खड़ा करते हैं, वे विस्मृति के गर्त में चले जाते हैं। बी. एन. राव का भी यही हश्र हुआ। न पाठ्यपुस्तकों में उनका समुचित उल्लेख है, न सार्वजनिक विमर्शों में उनका नाम आता है। शायद इसलिए क्योंकि उन्होंने कभी खुद को प्रचारित करने का प्रयास नहीं किया। उनका काम बोलता रहा — और वे चुपचाप पीछे खड़े रहे।
लेकिन क्या यह चुप्पी अब भी स्वीकार्य है?
अब समय है स्मरण और सम्मान का
जैसे-जैसे हम भारत के संविधान के 75 वर्षों की ओर अग्रसर हो रहे हैं, यह हमारी नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि हम उन व्यक्तियों को पुनः स्मरण करें जिन्होंने नींव रखी, लेकिन मंच पर नहीं दिखे। बी. एन. राव न केवल संविधान के प्रारूपकार थे, बल्कि वे भारतीय लोकतंत्र के सिद्धांतों के शिल्पकार भी थे।
उनकी विरासत केवल विधिक दस्तावेजों तक सीमित नहीं है, वह हर बार जीवित होती है जब सर्वोच्च न्यायालय मौलिक अधिकारों की रक्षा करता है, जब न्यायपालिका कार्यपालिका को उसकी सीमाएं याद दिलाती है, और जब कोई नागरिक संविधान के आधार पर अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाता है।
बी. एन. राव ने भारत को केवल एक संविधान नहीं दिया, उन्होंने एक दृष्टि दी — ऐसी दृष्टि जिसमें लोकतंत्र, न्याय, समानता और समावेशिता के मूल्यों को एक स्थायी आधार मिला। उन्होंने भाषण नहीं दिए, लेकिन उनकी कलम ने इतिहास लिखा। वे नायक नहीं कहे गए, लेकिन उन्होंने नायकत्व का परिभाषा बदल दी।
अब आवश्यकता है कि हम उन्हें उस स्थान पर स्थापित करें जिसके वे सच्चे अधिकारी हैं — न केवल संविधान के पृष्ठों में, बल्कि जनता की चेतना में भी। भारत का लोकतंत्र उनके त्याग और चिंतन की अमूल्य विरासत पर खड़ा है। हमें यह स्वीकार करना होगा कि इस लोकतंत्र की नींव में बी. एन. राव का दीपक अब भी जल रहा है — बस हमने उसकी लौ देखना बंद कर दी है।
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