नई दिल्ली । उत्तराखंड विधानसभा ने समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) बिल पारित कर दिया है। वह देश का पहला ऐसा राज्य बन गया है, जिसन...
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दिल्ली । उत्तराखंड विधानसभा ने समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code)
बिल पारित कर दिया है। वह देश का पहला ऐसा राज्य बन गया है, जिसने ये बिल
पारित किया है। बिल में हर धर्म, जाति, संप्रदाय, वर्ग के लिए विवाह, तलाक,
विरासत, गोद लेने जैसे कानूनी पहलुओं पर एक जैसे नियम बनाए गए हैं। गवर्नर
से संस्तुति मिलते ही UCC उत्तराखंड में कानून बन जाएगा। मई 2022 में
उत्तराखंड सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की रिटायर्ड जज जस्टिस रंजना प्रकाश
देसाई के अगुवाई में एक विशेषज्ञ कमेटी का गठन किया था, जिसने बिल के लिए
कई सुझाव दिए हैं।जस्टिस देसाई कमेटी ने 13 महीने से अधिक समय तक कई बैठकें
कीं और कई मुस्लिम बहुल देशों के कानूनों का भी अध्ययन किया, जहां महिलाओं
और पुरुषों के अधिकारों के लिए एक समान नागरिक कानून बनाने के लिए कानूनों
में संशोधन किए गए थे। इस दौरान पैनल ने अपने देश में हिंदू धर्म से लेकर
ईसाई धर्म और इस्लाम तक सभी धर्मों में प्रचलित व्यक्तिगत कानूनों में
संवैधानिक सुधार और लैंगिक न्याय का भी अध्ययन किया और उस पर आमलोगों से
फीडबैक भी ली थी.
इन मुस्लिम बहुल देशों ने भी बदले कानून
ईटी
की एक रिपोर्ट के मुताबिक, एक्सपर्ट पैनल ने तुर्किए, इंडोनेशिया, सऊदी
अरब, बांग्लादेश और अजरबैजान समेत नेपाल और विकसित देश समझे जाने वाले
अमेरिका, फ्रांस और जर्मनी के नागरिक कानूनों का भी अध्ययन किया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि मुस्लिम बहुल देश तुर्किए ने 1926 से लागू
पुराने कानूनों में साल 2002 में बदलाव किया है और कानून में लैंगिक समानता
की बहाली की है। नए कानून के मुताबिक तुर्किए में विवाह, तलाक और संपत्ति
के बंटवारे के मामले में महिलाओं और पुरुषों को बराबर अधिकार दिए गए हैं।
तुर्किए में भी अब शादी की उम्र महिला और पुरुषों के लिए न्यूनतम 18 साल कर
दी गई है। इंडोनेशिया ने भी शादी और तलाक का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य करते
हुए इसकी मंजूरी के लिए कोर्ट से परमिशन लेना जरूरी बना दिया है। अजरबैजान
में भी एक दशक पहले ही शादी की उम्र न्यूनतम 18 साल कर दी गई है और महिलाओं
एवं पुरुषों को संपत्ति में बराबर का अधिकारी बनाया है। सऊदी अरब ने 2022
से ही नागरिक कानूनों में बदलाव लाना शुरू किया है। वहां भी शादी और तलाक
का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य बना दिया गया है। इसके अलावा बच्चे को गोद लेने
के अधिकारों में महिलाओं की स्थिति मजबूत बनाई गई है।
नेपाल में क्या बदलाव
रिपोर्ट
में कहा गया है कि पड़ोसी देश नेपाल ने भी 2018 में अपने राष्ट्रीय नागरिक
कानून में बदलाव किया है और बहुविवाह पर रोक लगाई है। नेपाल ने भी शादी और
तलाक के मामलों का अनिवार्य पंजीकरण कर दिया है। इसके अलावा शादी और गोद
लेने के मामलों में भी दोनों को बराबर अधिकार का प्रावधान किया है। इधर, कई
मुस्लिम संगठन इसका विरोध कर रहे हैं और इसे अल्पसंख्यकों अधिकारों पर
हमला करार दे रहे हैं।
भारत में मुस्लिम क्यों कर रहे विरोध?
ऑल
इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड ने तर्क दिया है कि UCC से भारतीय संविधान के कई
अनुच्छेदों का उल्लंघन होगा। जमीयत उलेमा-ए-हिंद का कहना है कि समान नागरिक
संहिता हिंदू-मुस्लिम एकता को नुकसान पहुंचाएगी। बिल के अनुसार अब मुस्लिम
भी बिना तलाक दिए एक से ज्यादा शादी नहीं कर सकेंगे, जबकि शरीयत के
मुताबिक मुस्लिम कई शादियां कर सकते हैं।
इतना ही नहीं, शरीयत के
मुताबिक लड़की की शादी की उम्र माहवारी की शुरुआत को माना जाता है, लेकिन
UCC में लड़की की शादी की उम्र 18 साल कही गई है। समान नागरिक संहिता में
हरेक शादी और तलाक का निबंधन अनिवार्य कर दिया गया है। तलाक पर महिला-पुरुष
दोनों को बराबर अधिकार दिया गया है। यूसीसी लागू होते ही मुस्लिमों में
तीन तलाक, हलाला और इद्दत जैसी प्रथा पर रोक लग जाएगी।
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