जब इतिहास को एक नारी ने मोड़ा aber news। भारत का इतिहास जितना वीर पुरुषों की गाथाओं से भरा है, उतना ही प्रेरणादायक स्त्रियों की अद्वितीय वीर...
जब इतिहास को एक नारी ने मोड़ा
aber news। भारत का इतिहास जितना वीर पुरुषों की गाथाओं से भरा है, उतना ही प्रेरणादायक स्त्रियों की अद्वितीय वीरता से भी है। इतिहास की किताबों में जिन रानियों और योद्धा स्त्रियों का उल्लेख मिलता है, वे केवल युद्धभूमि में तलवार उठाने वाली नहीं थीं, बल्कि उनमें कई ऐसी महिलाएँ भी थीं जो साधारण जीवन जीती थीं, पर जब समय आया, तो वह साधारणता असाधारण बन गई।
इसी श्रेणी में एक नाम है — ओनाके ओबावा। कर्नाटक के चित्रदुर्ग जिले की यह महिला न तो कोई शाही रानी थी, न ही प्रशिक्षित योद्धा। वह एक सैनिक की पत्नी थी, जिसने सिर्फ एक मूसल (ओनाके) से दुश्मनों के दाँत खट्टे कर दिए। यह कहानी है शौर्य की, बलिदान की, और उस साहस की जो नारी के भीतर छिपा हुआ ज्वालामुखी होता है।
चित्रदुर्ग — एक गढ़, एक परंपरा, एक चुनौती
चित्रदुर्ग (Chitradurga) किला दक्षिण भारत के प्रमुख किलों में गिना जाता है। यह कर्नाटक के केंद्र में स्थित है और अपने दुर्गम, चट्टानी भू-भाग और रणनीतिक बनावट के कारण ऐतिहासिक रूप से अत्यंत महत्त्वपूर्ण रहा है। 17वीं और 18वीं सदी के दौरान यह क्षेत्र नायक वंश के अधीन था, जो विजयनगर साम्राज्य के पतन के बाद स्थानीय सत्ता बन गए थे।
यह किला न केवल अपने स्थापत्य के लिए प्रसिद्ध था, बल्कि इसकी दीवारों ने कई युद्धों के समय देशभक्ति, निष्ठा और साहस की गाथाओं को भी देखा है। और इन्हीं दीवारों के पीछे एक ऐसी घटना घटित हुई जिसने इतिहास को नया आयाम दे दिया — ओनाके ओबावा की शौर्यगाथा।
ओनाके ओबावा: एक सामान्य स्त्री की असाधारण वीरता
ओबावा का जन्म और आरंभिक जीवन साधारण था। उनका विवाह केलड़ी नायक वंश के अधीन चित्रदुर्ग किले की सुरक्षा में तैनात एक सैनिक से हुआ था, जिसका नाम महादेवप्पा था। वह किले के एक खास प्रवेश मार्ग के पास पहरेदारी करता था, जिसे ‘छिपा द्वार’ या ‘गुप्त प्रवेश द्वार’ कहा जाता था।
कहानी 18वीं सदी की है, जब मैसूर के नवाब हैदर अली की सेनाएँ चित्रदुर्ग पर कब्जा करने की योजना बना रही थीं। कई असफल प्रयासों के बाद उन्होंने एक कुटिल योजना बनाई — किले की दीवार में स्थित एक गुप्त मार्ग से सैनिकों को भीतर भेजने की।
निर्णायक दिन: जब एक स्त्री अकेली सेना पर भारी पड़ी
यह एक सामान्य दिन था। महादेवप्पा अपनी ड्यूटी पर था और प्यास लगने पर अपनी पत्नी ओबावा से पानी लाने को कहा। ओबावा पानी लेने किले के भीतर स्थित एक कुएं की ओर गई। इसी दौरान उसकी नज़र गुप्त द्वार पर पड़ी जहाँ कुछ हलचल थी। उसने देखा कि एक के बाद एक हैदर अली के सैनिक संकरी गुफा से किले में प्रवेश कर रहे हैं।
यह दृश्य किसी के भी होश उड़ाने के लिए पर्याप्त था, परंतु ओबावा घबराई नहीं। उसके पास न कोई तलवार थी, न लाठी, न कोई सुरक्षा उपकरण। उसने अपनी रसोई से निकाली एक ओनाके (लकड़ी का भारी मूसल) और खड़ी हो गई उस छेद के पास, जहाँ से एक-एक कर सैनिक घुस रहे थे।
जैसे ही कोई सैनिक सिर बाहर निकालता, ओबावा मूसल से वार कर उसे वहीं मार गिराती। उसने एक-एक कर कई दर्जन सैनिकों को बिना शोर किए मौत के घाट उतार दिया और उनके शवों को किनारे करती रही।
मौन युद्ध, परन्तु असाधारण विजय
ओबावा की वीरता की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि उसने यह पूरा कार्य बिना कोई शोर किए किया, जिससे किले में तैनात अन्य सैनिकों को कुछ समय तक भनक तक नहीं लगी। यह एक प्रकार का ‘मौन युद्ध’ था, जिसमें एक निहत्थी महिला ने मूसल को अस्त्र बना कर कई प्रशिक्षित सैनिकों को मार डाला।
कुछ समय बाद जब उसके पति को इस गुप्त मार्ग से हमले की जानकारी मिली, तब वह वहाँ पहुँचा और ओबावा के वीरतापूर्ण कार्य को देखकर स्तब्ध रह गया। उसकी सूचना पर किले के अन्य रक्षक सक्रिय हो गए और शेष आक्रमणकारियों को बाहर ही रोक दिया गया।
बलिदान या बचाव — विभिन्न कथाएँ
कुछ इतिहासकारों का मत है कि ओबावा अंततः एक सैनिक से संघर्ष करते हुए वीरगति को प्राप्त हुईं। जबकि अन्य मानते हैं कि वह जीवित रहीं और उनके योगदान को उस समय के नायक शासकों द्वारा सम्मानित किया गया। किंतु चाहे जो भी हो, यह निश्चित है कि उनकी बहादुरी के कारण चित्रदुर्ग किला उस दिन बच गया।
कर्नाटक की जनश्रुति और सांस्कृतिक चेतना में ओबावा
कर्नाटक की लोककथाओं, जनगीतों और नाट्य प्रस्तुतियों में ओबावा की कहानी जीवंत है। आज भी चित्रदुर्ग किले के पास स्थित उस स्थान को ‘ओबावा किंडि’ कहा जाता है — अर्थात ओबावा का दरवाज़ा।
कन्नड़ साहित्य में उनकी वीरता पर कई कविताएँ और लोकगीत रचे गए हैं। ‘वीर ओनाके ओबावा’ एक प्रतिष्ठित नाट्य रूपांतरण है जिसे विभिन्न सांस्कृतिक मंचों पर प्रस्तुत किया जाता है।
सरकारी मान्यता और सम्मान
हाल के वर्षों में सरकार और सामाजिक संगठनों ने ओनाके ओबावा को वह सम्मान देना शुरू किया है जिसकी वह सदियों से हकदार थीं:
1. कर्नाटक सरकार ने चित्रदुर्ग में ओबावा की स्मृति में भव्य प्रतिमा स्थापित की है।
2. कई शैक्षणिक संस्थानों, मार्गों और महिला सशक्तिकरण योजनाओं का नाम उनके नाम पर रखा गया है।
3. कर्नाटक लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में उनके योगदान को शामिल किया गया है ताकि नई पीढ़ी उनके बारे में जाने।
4. 2021 में भारत सरकार ने उनके नाम पर डाक टिकट जारी करने की योजना बनाई, जो उस अदृश्य नायिका को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान देने की दिशा में बड़ा कदम था।
ओनाके ओबावा: भारतीय नारी का प्रतीक
ओबावा केवल एक ऐतिहासिक चरित्र नहीं हैं; वह एक प्रतीक हैं भारतीय नारी शक्ति का। उन्होंने यह साबित किया कि जब अवसर आता है, तो एक साधारण महिला भी असाधारण कार्य कर सकती है। उनकी कहानी आधुनिक भारत में नारी सशक्तिकरण का आदर्श उदाहरण है।
आज जब महिलाओं को समाज में बराबरी का स्थान देने की चर्चा होती है, तो हमें ओबावा जैसी स्त्रियों की गाथाएँ याद करनी चाहिए, जिन्होंने बिना किसी अधिकार, सत्ता या औपचारिक प्रशिक्षण के अपने कर्तव्य को सर्वोपरि रखा।
आज की पीढ़ी के लिए प्रेरणा
ओबावा की कहानी आज के युवाओं, विशेषकर लड़कियों के लिए कई सबक लेकर आती है:
धैर्य और साहस किसी भी परिस्थिति में विजय दिला सकते हैं।
राष्ट्र और समाज की रक्षा केवल सैनिकों का ही कर्तव्य नहीं, बल्कि हर नागरिक का धर्म है।
एक साधारण घरेलू वस्तु भी हथियार बन सकती है, यदि इरादे मजबूत हों।
नारी केवल कोमलता की नहीं, बल्कि संघर्ष और बलिदान की भी मूर्ति है।
वह अकेली स्त्री जो इतिहास में अकेली नहीं रही
ओनाके ओबावा अकेली थीं उस दिन, परंतु उन्होंने जो किया, वह आज भी हजारों महिलाओं को शक्ति देता है। वह अकेली थीं उस युद्ध में, परंतु उनके साहस ने पूरे चित्रदुर्ग को बचा लिया।
इतिहास ने भले ही उन्हें ज्यादा जगह नहीं दी, परंतु यह लेख उसी चुप्पी को तोड़ने का एक प्रयास है। आज आवश्यकता है कि हम अपने नायकों के साथ-साथ नायिकाओं को भी उतना ही सम्मान दें, जितना वे वास्तव में हकदार हैं।
ओनाके ओबावा की कहानी केवल वीरता की नहीं, बल्कि भारतीय स्त्री की निःशब्द शक्ति की दास्तान है, जो जब प्रकट होती है, तो इतिहास तक उसका सम्मान करने को विवश हो जाता है।
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