नई दिल्ली। आजकल लोगों के अंदर धैर्य खत्म हो गया है. वे विपरीत हालातों से बहुत जल्दी परेशान हो जाते हैं और हर हाल में समस्या का जल्द से जल्द ...
नई दिल्ली। आजकल लोगों के अंदर धैर्य खत्म हो गया है. वे विपरीत हालातों से बहुत जल्दी परेशान हो जाते हैं और हर हाल में समस्या का जल्द से जल्द निवारण चाहते हैं. स्थितियां उनके अनुरूप न रहें तो या तो डिप्रेशन में चले जाते हैं या आवेश में आकर आत्महत्या कर लेते हैं. लेकिन अगर आपको लगता है कि आत्महत्या कर लेने से आपका छुटकारा कष्टों से छूट जाएगा, तो आप गलत हैं। गरुड़ पुराण में आत्महत्या करने वालों के हश्र के बारे में बताया गया है. इसे निंदनीय अपराध माना गया है और ईश्वर का अपमान बताया गया है. आत्महत्या करने वाला व्यक्ति मृत्यु के बाद और भी बुरी दशा में पहुंच जाता है, जहां वो न तो अपनों से कोई संपर्क कर पाता है और न ही किसी लोक में कोई स्थान पाता है. जानिए आत्महत्या को लेकर और क्या कहता है गरुड़ पुराण।
अधर में होती है आत्मा
गरुड़ पुराण के मुताबिक आत्महत्या करने वाले की आत्मा अधर में लटक जाती है. ऐसी आत्मा को तब तक दूसरा जन्म या कोई अन्य ठिकाना नहीं मिलता, जब तक कि उसका समय चक्र पूरा नहीं हो जाता है. कहते हैं मरने के बाद कुछ आत्माएं 10वें दिन व 13वें दिन में और कुछ आत्माएं 37 से 40 दिनों में शरीर धारण कर लेती हैं, लेकिन आत्महत्या या किसी घटना, दुर्घटना में मारे गए लोग जिनकी अकाल मृत्यु होती है, उन्हें तब तक शरीर नहीं मिलता जब तक कि उनका समय पूरा नहीं हो जाता।
प्रेत या पिशाच बन भटकती है आत्मा
यदि आत्महत्या करने वाले व्यक्ति की कोई इच्छा अधूरी रह गई है या वो गहरे तनाव के कारण ऐसा कर रहा है, तो ऐसी आत्मा को नया शरीर मिल जाना और भी मुश्किल हो जाता है. ऐसे में परेशान या अतृप्त आत्मा भूत, प्रेत या पिशाच योनि धारण कर भटकती रहती है. ये भटकाव तब तक रहता है, जब तक कि उनके मृत शरीर की निर्धारित आयु पूरी नहीं हो जाती. ऐसे में श्राद्ध, तर्पण और धार्मिक कार्य भी आसानी से आत्मा को भटकाव से मुक्ति नहीं दिला पाते.
मुक्ति का है ये मार्ग
अकाल मृत्यु से मरने वाले लोगों की आत्मा को भटकाव से मुक्ति दिलाने के लिए गरुड़ पुराण में कुछ उपाय बताए गए हैं. ऐसे में मरने वाले के परिजनों को मृत आत्मा के लिए तर्पण, दान, पुण्य, गीता पाठ, पिंडदान करना चाहिए. साथ ही अगर कोई इच्छा शेष है तो उस इच्छा को पूर्ण करना चाहिए. ऐसा लगभग तीन सालों तक करना चाहिए. इससे आत्माएं संतुष्ट हो पाती हैं और दूसरा शरीर धारण करने में सक्षम बन पाती हैं.
(यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)
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