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प्रेमचंद की रचनाएं आज भी हैं उतनी ही प्रासंगिक, जितनी अपने समय में थीं

मैट्स विश्वविद्यालय में प्रेमचंद व तुलसीदास जयंती पर विचार गोष्ठी आयोजित रायपुर । साहित्य के अमर दीप, उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की जयं...



मैट्स विश्वविद्यालय में प्रेमचंद व तुलसीदास जयंती पर विचार गोष्ठी आयोजित

रायपुर । साहित्य के अमर दीप, उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की जयंती के अवसर पर मैट्स विश्वविद्यालय रायपुर के हिन्दी विभाग द्वारा एक विशेष व्याख्यान कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस अवसर पर गोस्वामी तुलसीदास जयंती भी श्रद्धा और विचार विमर्श के साथ मनाई गई। कार्यक्रम की गरिमा छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. माणिक विश्वकर्मा की उपस्थिति से और भी बढ़ गई, वहीं अध्यक्षता कुलपति प्रो. के.पी. यादव ने की।

मुख्य वक्ता डॉ. विश्वकर्मा ने प्रेमचंद के साहित्यिक योगदान, विचारों की प्रासंगिकता और उनकी कथाओं की सहजता पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि प्रेमचंद का लेखन केवल मनोरंजन नहीं, समाज का आईना है। उनकी रचनाएं आज भी समाज को दिशा देने में सक्षम हैं। उन्होंने प्रेमचंद की विनम्रता और विचारशीलता को आज के लेखकों के लिए आदर्श बताया।

कुलपति प्रो. के.पी. यादव ने अपने संबोधन में कहा कि प्रेमचंद की राह सत्य, संवेदना और समाज के प्रति उत्तरदायित्व की राह है। ऐसे साहित्यकारों के विचारों को आत्मसात कर युवा पीढ़ी को सही दिशा मिल सकती है।

हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. रेशमा अंसारी ने अपने वक्तव्य में कहा कि प्रेमचंद और तुलसीदास जैसे साहित्य मनीषियों के विचारों को वर्तमान संदर्भों में समझना और अपनाना आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है। उन्होंने छात्रों से अपील की कि वे साहित्य को सिर्फ पाठ्यक्रम का हिस्सा न समझें, बल्कि उससे जीवन को गढ़ने की प्रेरणा लें।

कार्यक्रम का संचालन हिन्दी विभाग की डॉ. सुपर्णा श्रीवास्तव ने प्रभावशाली ढंग से किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन डॉ. कमलेश गोगिया द्वारा किया गया। कार्यक्रम में डॉ. सुनीता तिवारी, डॉ. मनोरमा चंद्रा, सुरभि सिंह, शेफाली दास सहित विभिन्न विभागों के प्राध्यापक व बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।

इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति श्री गजराज पगारिया, महानिदेशक प्रियेश पगारिया, उपकुलपति डॉ. दीपिका ढांढ और कुलसचिव श्री गोकुलानंदा पंडा ने कार्यक्रम की भूरी-भूरी प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि साहित्यिक आयोजनों से विद्यार्थियों में संवेदना और सोचने की शक्ति का विकास होता है, जो किसी भी समाज की जड़ों को मजबूत करता है।

साहित्य के दो महान स्तंभों—प्रेमचंद और तुलसीदास—की जयंती पर आयोजित यह आयोजन छात्रों और शिक्षकों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया।


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