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क्यों मनाया जाता है कजलियां का त्यौहार क्या है मान्यता पढ़े पूरी ख़बर

Aber news। विंध्यप्रदेश  का रीति रिवाज भी अपने आप में अनोखा और प्रचीन भी है। विंध्य मान्यताएं जितनी धार्मिक हैं उतनी ही सामाजिक और वैज्ञानिक...


Aber news। विंध्यप्रदेश  का रीति रिवाज भी अपने आप में अनोखा और प्रचीन भी है। विंध्य मान्यताएं जितनी धार्मिक हैं उतनी ही सामाजिक और वैज्ञानिक भी। रक्षाबंधन के दूसरे दिन मनाए जाने वाले कजलियां का त्यौहार जिसे भुजरिया नाम से भी जाना है ।

कुछ मान्यताओं के अनुसार कजलियां पर्व प्रकृति प्रेम और खुशहाली से जुड़ा है। इस पर्व का प्रचलन महान राजा आल्हा ऊदल के समय से है। आल्हा की बहन चंदा श्रावण माह से ससुराल से अपने मायके आई तो सारे नगरवासियोंं ने कजलियों से उनका स्वागत किया था।

एक ये भी कहानी है 
महोबा के सिंह सपूतों आल्हा-ऊदल-मलखान की वीरता आज भी उनके वीर रस से परिपूर्ण गाथाएँ बुंदेलखंड की धरती पर बड़े चाव से पढ़ी ,सुनी व समझी जाती है। महोबे के राजा के राजा परमाल, उनकी पुत्री राजकुमारी चन्द्रावलि का अपहरण करने के लिए उस समय के दिल्ली के राजा पृथ्वीराज ने महोबे पै चढ़ाई कर दि थी।

राजकुमारी उस समय तालाब में कजली सिराने अपनी सखी-सहेलियन के साथ गई थी।  राजकुमारी को पृथ्वीराज हाथ न लगाने पाये इसके लिए राज्य के बीर-बाँकुर (महोबा) के सिंह सपूतों आल्हा-ऊदल-मलखान की वीरतापूर्ण पराक्रम दिखलाया था। इन दो बीरों के साथ में चन्द्रावलि का ममेरा भाई अभई भी उरई से जा पहुँचे।

कीरत सागर ताल के पास में होने वाली ये लड़ाई में अभई बीरगति को प्राप्त हुआ, राजा परमाल का एक बेटा रंजीत शहीद हुआ। बाद में आल्हा, ऊदल, लाखन, ताल्हन, सैयद राजा परमाल का लड़का ब्रह्मा, जैसें बीर ने पृथ्वीराज की सेना को वहां से हरा के भगा दिया। महोबे की जीत के बाद से राजकुमारी चन्द्रवलि और सभी लोगों अपनी-अपनी कजिलयन को खोंटने लगी। इस घटना के बाद सें महोबे के साथ पूरे बुन्देलखण्ड में कजलियां का त्यौहार विजयोत्सव के रूप में मनाया जाने लगा है।
कजलियों (भुजरियां) पर गाजे-बाजे और पारंपरिक गीत गाते हुए महिलाएं नर्मदा तट या सरोवरों में कजलियां खोंटने के लिए जाती हैं। हरियाली की खुशियां मनाने के साथ लोग एक-दूसरे से मिलेंगे और बड़े बुजुर्ग कजलियां देकर धन-धान्य से पूरित क हने का आशीर्वाद देंगे। बुंदेलखंड और बघेलखंड के साथ महाकोशल में कजलियां प्रमुख पर्व है। यह पर्व सम्मान और विशेष उत्साह के साथ मनाया जाता है।

नागपंचमी के दिन घरों में परम्परा के अनुसार गेहूं के दाने बोए जाते है। रक्षाबंधन के दूसरे दिन कजलियों के साथ लोग एक-दूसरे के घर जा कर खुश समृद्धि की कामना करते हैं।

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