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ग्राम सोंड्रा में मिली पांडुवंशी काल की बुद्ध प्रतिमा

   शिवलिंग और खण्डित सीलबट्टे भी मिले  पुरातत्व एवं अभिलेखागार विभाग के अधिकारियों ने किया स्थल निरीक्षण रायपुर। शिवलिंग और खण्डित सीलबट्टे ...

 

 शिवलिंग और खण्डित सीलबट्टे भी मिले
 पुरातत्व एवं अभिलेखागार विभाग के अधिकारियों ने किया स्थल निरीक्षण

रायपुर। शिवलिंग और खण्डित सीलबट्टे भी मिलेरायपुर से बिलासपुर मार्ग पर स्थित ग्राम सोंड्रा में गृह निर्माण के लिए किये जा रहे उत्खनन कार्य के दौरान पांडुवंशी काल की प्राचीन बुद्ध प्रतिमा सहित अन्य पुरातात्विक प्रतिमाएं मिलने से गांव में हर्ष व्याप्त है। गौरतलब है कि ग्राम सोंड्रा में श्री दिलेन्द्र बंछोर द्वारा गृह निर्माण हेतु किए जाने वाले उत्खनन कार्य के दौरान बुद्ध की प्रतिमा प्राप्त हुई है। इस संबंध में जानकारी मिलते ही पुरातत्त्व, अभिलेखागार एवं संग्रहालय विभाग के संचालक श्री विवेक आचार्य के निर्देश पर पुरातत्व विभाग की टीम डॉ. पी.सी. पारख, डॉ. वृषोत्तम साहू तथा डॉ. राजीव मिंज के द्वारा स्थल निरीक्षण किया गया।  पुरातत्व एवं अभिलेखागार विभाग के अधिकारियों ने बताया कि रायपुर से बिलासपुर मुख्य मार्ग में 16 किलोमीटर की दूरी पर सांकरा से 2 किलोमीटर पश्चिम दिशा में स्थित ग्राम सोंड्रा (अक्षांश 21°21’53.5“N देशान्तर 81°38’19.4 E) है। उक्त स्थल से खारुन नदी लगभग 3 किलोमीटर पश्चिम दिशा पर स्थित है। प्रतिमा प्राप्ति स्थल ग्राम के सबसे ऊंचाई वाले भाग पर स्थित है और यहाँ प्राचीन टीला होने के साक्ष्य दिखाई देते हैं। श्री दिलेन्द्र बंछोर के व्यक्तिगत आवास परिसर में ही भवन के विस्तार के लिए कालम हेतु किए गए उत्खनन के दौरान भूमि की सतह से लगभग 3 फीट की गहराई से बुद्ध की प्रतिमा का ऊपरी भाग प्राप्त हुआ। अधिकारियों ने बताया कि स्थानीय बालुए पत्थर में निर्मित इस प्रतिमा की चौड़ाई 74X ऊंचाई 87X मोटाई 40 सेंटीमीटर है। बुद्ध की इस विशाल प्रस्तर प्रतिमा के माथे पर ऊर्णा (तिलक चिन्ह) का अंकन इसे अनोखा रूप प्रदान करती है और इस आधार पर इसके ध्यानी बुद्ध होने की संभावना अधिक प्रतीत होती है। बुद्ध की यह आवक्ष प्रतिमा अपूर्ण है, जिस पर छेनी के चिन्ह साफ दिखाई दे रहे हैं। त्रि-स्तरीय निर्माण तकनीक में बनी बुद्ध प्रतिमा का यह ऊपरी भाग है। इस तकनीक का प्रयोग बालुए पत्थर की विशाल प्रतिमाओं के निर्माण हेतु किया जाता था जिसमें किसी प्रतिमा को तीन प्रस्तर खंडों में योजना के अनुरूप स्तरों में निर्मित कर लम्बवत स्थापित किया जाता था। इस तकनीक की बनी बुद्ध प्रतिमा के उदाहरण छत्तीसगढ़ के सिरपुर व राजिम और बिहार के बोधगया में देखे जा सकते हैं ।  अधिकारियों ने बताया कि स्थल निरीक्षण करनें पर यहाँ अन्य प्रतिमाओं के होने की भी जानकारी प्राप्त हुई है, जो कि निकट ही में स्थित मंदिर में तथा मंदिर के बगल में बने चबूतरे पर स्थापित हैं। प्रतिमाओं में भूमिस्पर्श मुद्रा में बुद्ध, उपासक, अज्ञात स्थानक प्रतिमा, योगिक ध्यानी मुद्रा में बुद्ध, ललितासन मुद्रा तारा, स्थानक बोधिसत्त्व के साथ ही 4 शिवलिंग, 4 खण्डित पायदार सीलबट्टे, 1 प्रणाल युक्त प्रतिमा पीठ, कुछ खण्डित प्रतिमाएँ व स्थापत्य खंड प्राप्त हुये हैं। उक्त स्थल के पुरावशेष पांडुवंशी काल के (6वीं से 9वीं शताब्दी ई.) प्रतीत हो रहा है।

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