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रोचक है कुट्टू का इतिहास, हजारों सालों से खा रहे लोग

  देशभर में इन दिनों चैत्र नवरात्रि का पर्व उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। देवी मां की उपासना के साथ-साथ श्रद्धालु इन दिनों 9 उपवास भी रखते ...

 

देशभर में इन दिनों चैत्र नवरात्रि का पर्व उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। देवी मां की उपासना के साथ-साथ श्रद्धालु इन दिनों 9 उपवास भी रखते हैं। यही कारण है कि नवरात्रि के दौरान कुट्टू के आटे (Buckwheat Flour) की खपत काफी बढ़ जाती है। कुट्टू के आटे से बनी रेसिपी जहां खाने में काफी स्वादिष्ट होती है, वहीं ग्लूटेन फ्री भी होती है। यहीं कारण है कि हजारों सालों से भारतीय उपमहाद्वीप में कुट्टू का आटा खाया जा रहा है। आधुनिक शोध में अब बताया गया है कि कुट्टू के आटा ग्लूटेन फ्री होता है और इसमें फाइबर की मात्रा काफी ज्यादा होती है, इसलिए इसके सेवन से सेहत को कोई नुकसान नहीं होता है।

रोचक है कुट्टू का इतिहास, हजारों सालों से खा रहे लोग

इतिहासकारों का अनुमान है कि कुट्टू के आटे की खेती सबसे पहली बार दक्षिण पूर्व एशिया में करीब 6000 ईसा पूर्व में गई थी। मध्य एशिया, तिब्बत और मध्य पूर्व से होते हुए यह यूरोप तक पहुंच गया। कुट्टू के खेती से सबसे पुराने अवशेष चीन के युन्नान प्रांत में मिले हैं, जो करीब 2600 ईसा पूर्व के हैं। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि कुट्टू के आटे का उपवास के दौरान भारत में भले ही खपत बढ़ जाती है, लेकिन इसे सबसे ज्यादा रूस में खाया जाता है। दुनिया में कुट्टू की सबसे ज्यादा पैदावार रूस में होती है, वहीं दूसरे नंबर पर फ्रांस है। चीन और तिब्बत में कुट्टू के नूडल्स सदियों से खाए जा रहे हैं। 

प्रोटीन से भरपूर होता है कुट्टू का आटा

कुट्टू के आटे की न्यूट्रिशन वैल्यू की बात की जाए तो यह प्रोटीन से भरपूर होता है और इसमें मैग्नीशियम, फॉलेट, जिंक, विटामिन-B, आयरन, कैल्शियम, कॉपर, मैग्नीज और फास्फोरस पाया जाता है। कुट्टू के आटे को अनाज की श्रेणी में नहीं रखा गया है और न ही यह फल की श्रेणी में आता है। कुट्टू के आटे का लैटिन नाम ‘फैगोपाइरम एस्कलूलेंट’ है। यह पोलीगोन सिएई परिवार का पौधा है। बकव्हीट पौधे से प्राप्त यह फल तिकोने आकार का होता है, जिसे पीसकर आटा तैयार किया जाता है।

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