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बिलासपुर हाईकोर्ट के आदेश की अनदेखी:मीसा बंदियों को 90 दिन में देनी थी सम्मान निधि, 7 माह बाद भी सरकार ने नहीं किया भुगतान

रायपुर। आपातकाल के समय जेल में बंद रहे मीसा बंदियों को मिलने वाली सम्मान निधि का अभी तक भुगतान नहीं किया गया है। जबकि इस संबंध में छत्तीसगढ़ ...


रायपुर। आपातकाल के समय जेल में बंद रहे मीसा बंदियों को मिलने वाली सम्मान निधि का अभी तक भुगतान नहीं किया गया है। जबकि इस संबंध में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने सरकार को 90 दिनों का समय दिया था। सात माह बाद भी कोर्ट के आदेश की अनदेखी पर शासन से जवाब तलब किया गया है। इसके लिए शासन को दो सप्ताह का समय कोर्ट ने दिया है। मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस की डबल बेंच में हुई है। नारायण सिंह चौहान ने अधिवक्ता महेंद्र दुबे के माध्यम से हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। इसमें बताया गया है कि हाईकोर्ट ने मई 2020 में शासन को आदेश जारी कर मीसा बंदियों की जनवरी 2019 से जनवरी 2020 तक की बकाया सम्मान निधि देने का आदेश दिया था। कोर्ट की ओर से इसके लिए 90 दिनों का समय दिया गया। इसके सात माह बाद भी सम्मान निधि नहीं दी गई। जबकि राज्य सरकार ने जनवरी 2020 में सम्मान निधि देने से संबंधित 2008 के अधिनियम को निरस्त किया था।
शासन ने जुलाई 2020 में नोटिफिकेशन जारी किया
याचिकाकर्ता की दलील थी कि 23 जनवरी 2020 को राज्य शासन ने तत्कालीन भाजपा सरकार के पेंशन दिए जाने के नियम को निरस्त कर दिया। राज्य शासन ने संशोधन करते हुए जुलाई 2020 को एक नया नोटिफिकेशन निकालकर जनवरी 2020 को जारी नोटिफिकेशन को उसी दिन से प्रभावी कर दिया था। जबकि इस बीच हाईकोर्ट में शासन की ओर से दायर रिव्यू याचिका और रिट अपील दोनों खारिज हो चुकी है।
कांग्रेस सरकार ने जनवरी 2019 में भौतिक सत्यापन और समीक्षा पर लगाई रोक
आपात काल के समय के निरुद्ध रहे मीसा बंदियों को 2008 में तत्कालीन भाजपा सरकार ने मासिक सम्मान निधि देने का नियम बनाया था। उसके बाद कांग्रेस सरकार ने जनवरी 2019 में एक अधिसूचना जारी कर प्रदेश के सारे मीसा बंदियों के भौतिक सत्यापन करने और समीक्षा के नाम पर पेंशन पर रोक लगा दी। मीसा बंदियों की ओर से हाईकोर्ट में पहले 40 याचिकाएं दायर कर पेंशन दिए जाने की मांग की गई थी।
हाईकोर्ट ने पक्ष में फैसला दिया
याचिका में सुनवाई के दौरान अधिवक्ता महेन्द्र दुबे ने तर्क प्रस्तुत कर कहा कि जनवरी 2019 से जनवरी 2020 तक के रोके गए पेंशन दिया जाना चाहिए। क्योंकि साल भर बाद ही उस नियम को निरस्त किया गया। इस पर हाईकोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला दिया था।

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